श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग ; आधुनिक परिप्रेक्ष्य
Abstract
सत्य सनातन धर्म एवं संस्कृति का प्रमुख ग्रन्थ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पूरे विश्व में विख्यात है। इसमें श्रीकृष्ण भगवान् द्वारा अर्जुन के माध्यम से समस्त मानव जाति को कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग का उपदेश दिया गया है। उपदेश भी कैसा? मित्रवत् उपदेश। इसमें उपदेश देते हुए अंत में श्रीकृष्ण भगवान् द्वारा अंतिम निर्णय अर्जुन को ही सौंप दिया गया है। जबरदस्ती कोई बात सौपीं नहीं गयी है। अनेक विशेषताओं से विभूषित एवं भारतीय संस्कृति का दर्पण, सारगर्भित ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का अंश है। वेदव्यास द्वारा इस ऐतिहासिक महाकाव्य की आज के युग में भी उतना ही महत्त्व है, जितना के उस समय कुरुक्षेत्र में अर्जुन को था। आज समस्त मानव का ह्रदय ही कुरुक्षेत्र बन गया है, अनेक द्वंद्व मनुष्य के भीतर ही भीतर उसे विचलित करता रहता है। आज का मनुष्य भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुका है। अतः प्रत्येक को श्रीकृष्ण जैसा सारथि चाहिए ताकि वे भी अपने भीतर के शत्रुओं काम, क्रोध आदि पर विजय प्राप्त कर सकें।